जिसे कहते थे सोने की चिड़ियाँ
आज सोना देख ललचाती है ,
डॉलर के बढ़ते भावो पर
रुपया खुद पर शर्माती है ।
आज के विकसित राष्ट्र , जब
पत्तो से लाज बचाते थे ,
तब मेरे देश के लोग
सामवेद के मधुर गान गाते थे ।
आज के विद्वानों को जब
गिनती भी ना आती थी ,
तब हमारे लोगो द्वारा
चाँद की दूरी निकाली जाती थी ।
जब मात्र पत्थर थे उनके हथियार
ब्रह्मास्त्र हम चलाते थे ,
महाभारत की भीषणता में
गीता का पाठ पढ़ाते थे ।
ज्ञान विज्ञानं कला संस्कृति ने
जन्म लिया जिस देश में
और जहाँ खुद ईश्वर आये
इंसानो से वेश में ।
राम कृष्ण की पावन भूमि
अब इंसानियत को तरसती है ,
चरित्र को नकारकर बस
पैसे पर नज़र अटकती है ।
जिस देश में नारी को
दुर्गा मान कर है पूजा जाता ,
उसी देश में उनकी इज़्ज़त
सरेआम है लूटा जाता ।
बुराई की बुराई उतनी नहीं
जितनी अच्छाई की चुप्पी खलती है ,
अच्छाई की बुजदिली के कारण
बुराई सीना तान चलती है ।
स्वर्णिम था अतीत हमारा
पर कलंकित है वर्तमान ,
अपने पुत्रो द्वारा ही भारत माँ
खोती अपना है सम्मान ।
लोग जितने दुखी अपने गम से नहीं
उससे ज्यादा दूसरो की ख़ुशी से है ,
खुदगर्ज़ी का आलम ऐसा , सोचते है
सारा कुछ बस मुझी से है ।
हम बदलेंगे तो परिवार बदलेगा
परिवार बदलेगा तो समाज बदलेगा ,
समाज बदलेगा तो राष्ट्र बदलेगा और
राष्ट्र बदलेगा तो पूरा विश्व बदलेगा ।
बदलना चाहते हो देश तो
अपने आप को बदल डालो ,
जगा अपने पौरुष को
सारी बुराइयाँ कुचल डालो ।
मनुष्य सामाजिक पशु नहीं
भटका हुआ देवता है वो ,
भुला अपनी शक्तियों को
बस बेबसी से देखता है वो ।
पहचानो अपने आप को
शक्ति और प्रेम से भरे हो तुम ,
दो कौड़ी का न मोल तुम्हारा
सोने से खरे हो तुम ।
बदलाव की चिंगारी जली है
उसे शोलो में हम भड़काएंगे ,
वृद्धो से कुछ ना होगा
अपना भारत अब हम बनाएंगे ।
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी ‘
०७.०१.२०१३