“हेलो”
“ हेलो बेटा तू ठीक है ना ?”
“मैं ठीक हूं |मैं एक बहुत इंपॉर्टेंट मीटिंग में था |क्यों बार-बार कॉल कर रही थी?”
“ बेटा मेरा जी घबरा रहा था |”
“मैं ठीक हूं |चलो घर पहुंच कर बात करता हूं ,अभी थोड़ा व्यस्त हूं |”
“ठीक है बेटा अपना ख्याल रखना|”
सार्थक ने झुंझलाते हुए अपने फोन को अपने जेब में डाला और सर हिलाते हुए मीटिंग रूम में जाने लगा |
श्रद्धा का मन अभी बेचैन था |उसे आज सुबह से ही कुछ अच्छा नहीं लग रहा था |ऐसा लग रहा था कि मानो कहीं कुछ अशुभ ना हो जाए |अपने बेटे का समाचार सुन उसकी बेचैनी थोड़ी कम हो गई|
“क्या हुआ सार्थक ?तू कुछ परेशान लग रहा “-अश्विन ने पूछा|
“क्या बताऊं यार ! माँ बार-बार कॉल कर परेशान कर देती है |”
अश्विन कुछ बोलने ही जा रहा था कि सार्थक ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा|
“ माँ को तो कुछ काम-धाम नहीं है |दिन भर घर में बैठी रहती है |दिन भर कुछ ना कुछ सोचती रहती है और फिर मुझे कॉल कर बोलती है ,मेरा जी घबरा रहा है |अरे भाई! कुछ काम कर लिया करो तो अपने आप जी लगा रहेगा और घबराएगा भी नहीं | मुझे भी तो कई काम रहते हैं ,दिन भर फोन लेकर माँ से बात तो नहीं कर सकता हूं ना |”
अश्विन ने शांत स्वर में कहा “ यार ! ठंडे दिमाग से सोच |तेरी माँ तुझसे इतनी दूर रहती है | तू उनका इकलौता बेटा है |अगर वह चाहती है कि तू थोड़ी देर उनसे बात करें तो हर्ज ही क्या है ?”
“ यार मैं अभी बहुत व्यस्त चल रहा हूं | मुझे तो अपने लिए भी वक़्त नहीं है तो किसी और के लिए मैं कहाँ से वक्त निकालूँगा ?”
“सार्थक वह कोई और नहीं तेरी माँ है |इतना तो तेरा कर्तव्य बनता ही है | तुझे तो हमेशा उनसे प्यार से बात करनी चाहिए |”
“अश्विन तू मुझे मत सीखा कि अपनी माँ से कितना और कैसे बात करना है “- सार्थक गुस्से में अश्विन की बात काट कर अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगा |
अश्विन ने भी सोचा कि इसे समझाने का कोई फायदा नहीं है और उसने भी अपनी चाल अपनी गाड़ी की ओर मुड़ा ली|
सार्थक ने घर पहुंचकर दरवाजे की घंटी बजाई , शोभा ने चिंतित मुद्रा में दरवाजे को खोला |
“ क्या हुआ शोभा ?” सार्थक ने पूछा |
“सार्थक, संस्कार अभी तक स्कूल से नहीं आया , रात के 9:00 बज रहे हैं| एक बार मैंने शाम में फोन किया था तो उसने कहा कि स्कूल के बाद वह किसी दोस्त के घर जाएगा |उसके बाद मैंने उससे तीन-चार कॉल किए, पहले तो उसने उठाया नहीं और उसके बाद उसने मेरा फोन काट दिया | मेरा तो जी बहुत घबरा रहा है |”
सार्थक ने शोभा को समझाते हुए कहा ” कोई बात नहीं अब वह बड़ा हो रहा है | इतनी घबराने की बात नहीं है |”
“आप नहीं समझोगे, माँ जो नहीं हो | एक माँ ही समझ सकती है कि माँ के दिल पर क्या बीतता है|” रोते हुए शोभा ने कहा |
सार्थक शोभा को अपने पास बुलाकर उसके कंधे को सहलाने लगा, तभी दरवाजे की घंटी बजी |शोभा ने दरवाजा खोला तो देखा कि संस्कार कान में इयरफोन लगाए अपनी मस्ती में गेट पर खड़ा है | शोभा ने उसके कान से ईयर फोन को निकालते हुए कहा | ” कहाँ था जो इतनी देर लगा दी और मेरे फोन का जवाब क्यों नहीं दे रहा था ?”
” ओ हो माँ कितना परेशान करती हो ” कहते हुए संस्कार अपने कमरे में जाने लगा |
” संस्कार !” सार्थक ने जोर की आवाज़ लगाई | संस्कार जहाँ था वहीं रुक गया |
” यार शाम से तेरी माँ इतनी परेशान है, रोते-रोते उसका बुरा हाल हो गया है | कब से तेरा इंतजार कर रही है, फोन तो तो उठा ही सकता था | फोन क्यों नहीं उठा रहा था |”
” पापा, माँ बार-बार फोन कर मुझे परेशान कर देती है | एक बार मैंने बताया तो था कि अपने दोस्त के घर जा रहा हूं , फिर हर आधे घंटे बाद फोन करने की जरूरत क्या है ? हर आधे घंटे पर हाल-चाल लेने की क्या जरूरत है ? एक-दो घंटे में मैं मर तो नहीं जाऊंगा |इतनी सी भी बात समझ नहीं आती है क्या ? “
” संस्कार अपनी माँ के बारे में ऐसे बात करते हैं क्या ? वह तुम्हारी माँ है | उनके साथ तुम्हें हमेशा अच्छे से बात करनी चाहिए |”
” पापा अब आप मुझे मत सिखाओ कि मेरी माँ से मुझे कैसे बात करनी चाहिए |” कहते हुए गुस्से में साथ संस्कार अपने कमरे में चला गया |
सार्थक ने शोभा की तरफ देखा और अचानक ही उसे दोपहर की घटना याद आ गई |उसने अपनी माँ से कैसे बात की , उसने अश्विन से क्या क्या कहा |सब कुछ उसके दिमाग में घूमने लगा | उसे अब अपने आप पर ग्लानि महसूस हो रही थी | उसने उसी वक्त अपनी माँ श्रद्धा को फोन लगाया |
” माँ !”
” क्या हुआ बेटा |तू ठीक है ना ?”
” हाँ माँ | मैं अच्छा हूं |तुम बताओ तुम कैसी हो |”
” मैं अच्छी हूं बेटा | बस आज सुबह से ही घबरा रहा था अब तुम्हारी आवाज सुन कर अच्छा लग रहा है |”
” मुझे भी तुम्हारी आवाज सुनकर काफी अच्छा लग रहा है माँ | सार्थक का गला भर आया |”
” सार्थक क्या हो गया ? तेरी आवाज भारी लग रही है |”
“आज से मैं हमेशा तुमसे इसी वक्त ढेर सारी बातें करूंगा |बहुत दिनों से तुमसे मैंने अच्छे से बात नहीं की है ना |”
” बेटा मैं हर समय इस समय का इंतजार करूंगी |”
” प्रणाम माँ !”
” खुश रहो बेटा |”
सार्थक की आंखें नम हो गई थी | शोभा की आंखें भी सार्थक को देखकर भर आई | तभी संस्कार ऊपर से आता है और शोभा के गले लग जाता है |
शोभा फिर मुस्कुराते हुए कहती है “तू ठीक तो है ना ?”
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी’
०९.०६.२०१६