” सुकुमार, तीर से भरे हुए तरकश के साथ लेकर चलो ” – आर्य ने कहा ।
सुकुमार हमेशा की भांति तरकश के लिए आर्य के पीछे चलने लगा ।
कुछ दूर जाकर वह दोनों रुक गए ।
दोनों अब एक जंगल के बीच में थे । बड़े – बड़े पेड़ , ऊपर नीला आसमान तथा बगल में एक छोटी नदी अपने मीठे स्वर में बहती हुई जा रही थी । आर्य ने अपने झोले से एक गुलाब निकला और सामने पड़े एक टूटे हुए तने के ऊपर रख दिया ।
फिर वह वहाँ से करीब दो सौ कदम पीछे गए । उन्होंने सुकुमार के एक तीर माँगा । अपनी धनुष की प्रत्यंचा को कान तक खींचते हुए , अपने शरीर को स्थिर किया । फिर उन्होंने अपनी साँस को भी स्थिर कर तीर को छोड़ दिया ।
तीर गुलाब को भेदते हुए , उसे लेकर , तने के पीछे वाले पेड़ से जा लगी ।
जब सुकुमार ने यह पहली बार देखा था तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था । कोई इतनी दूर , जब लक्ष्य बिल्कुल छोटा हो, ऐसा अच्छा निशाना कैसे लगा सकता है ? उसकी आँखे खुली की खुली रह गई थी । पर आज उसकी प्रतिक्रिया बहुत ही साधारण थी क्योंकि वह आर्य को रोज इसका अभ्यास करते हुए देख रहा था और आज तक एक बार भी उनका निशाना नहीं चूका था ।
आर्य के मन में एक विचार आया ।
आर्य आगे बड़े और उस तने के पास पहुँचे । उन्होंने अपने झोले से एक और गुलाब निकला और उसके ऊपर रख दिया । फिर वह वहाँ से करीब सौ कदम पीछे गए । उन्होंने अपने झोले से फिर एक रेशमी रुमाल निकला और अपने आँखों में बाँध लिया ।
” सुकुमार, मुझे एक तीर दो ।”
सुकुमार ने उन्हें एक तीर दिया और फिर उत्सुकता से देखने लगा ।
आर्य ने धनुष की प्रत्यंचा अपने कान तक खींचा । अपने शरीर तथा श्वास को स्थिर किया । फिर उन्होंने तीर को छोड़ दिया । शररर करते हुए तीर आगे बढ़ी ।
तीर गुलाब से बहुत दूर जाकर गिरी । आर्य ने अपने आँखों के ऊपर से रुमाल हटाया और मुस्कुराते हुए सुकुमार को देखने लगे ।
सुकुमार ने उनसे कहा ” आर्य ! मुझे तो लगा था कि आज आप मुझे विचार कि क्षमता दिखाएँगे । मुझे यह बताएँगे कि कैसे आँखे बंद होने पर भी निशाना लगाया जा सकता है । आपका तीर तो निशाने से बहुत दूर गिरा ।”
आर्य ने मुस्कुराते हुए कहा – ” आज तुम्हें मैंने एक बहुत बड़ी सीख दी है । रोज तुमने मुझे दो सौ कदम दूर से निशाना लगाते हुए देखा है । मैंने आज बस सौ कदम से निशाना लगाया और फिर भी चूक गया । सच्ची क्षमता वह होती है जिसमें मनुष्य बाकि सब भूलकर अपने लक्ष्य के ऊपर अपना सारा ध्यान केंद्रित कर सके । तभी वह उस लक्ष्य का भेदन कर सकता है । कोई भी मनुष्य उस लक्ष्य को नहीं भेद सकता है जिसे वह देख ही नहीं रहा हो । “
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निशांत चौबे ‘ अज्ञानी’
०८.०१.२०२२