राही जो चला गया इस राह से
वो लौट फिर वापस ना आएगा,
उसकी यादों को याद कर तू
आखिर कब तक यूँ आँसू बहाएगा ।
जो कुछ भी था बस में तेरे
तूने वो सब कुछ कर डाला ,
जिस पर तेरा कुछ बस नहीं
उसी का शोक तूने क्यूँ पाला ?
सपना चाहे कितना भी सुन्दर हो
आँखे खुलने पर टूट जाता है ,
जीवन चाहे कितना भी प्यारा हो
मृत्यु आने पर छूट जाता है ।
क्या टूटे सपने का तू
हर वक़्त शोक मनाएगा ?
जीवन जीने के बजाए
उनकी यादों में खो जाएगा ।
सपने का पता , सपने से
बाहर आने पर निकलता है ,
सपने के भीतर तो
सपना हकीकत सा लगता है ।
क्या जीवन भी एक सपना है
इसकी पुष्टि यहाँ कौन करे ?
आखिर किसके द्वारा तय होता
कौन जिये यहाँ और कौन मरे ?
बहुत सारे जवाब है इसके
कौन सही मुझे कुछ पता नहीं ,
पर मृत्यु को जानने से पहले
इसके ऊपर शोक तू जता नहीं ।
क्या पता जिसका तू शोक मनाता हो
वो हर्ष की बात हो ,
इधर तू प्यास से तरसता हो और
उधर सावन की बरसात हो ।
इस जीवन को तू जी
समझने का प्रयास ना कर ,
अपने कर्मों को तू अच्छे से कर
उनके फलों की आस ना कर ।
उस राही ने सफर तय कर लिया
मगर तेरा सफर अभी अधूरा है ,
उसकी यादों को अपने दिल में रख
तुझे ख़ुशी से करना उसे पूरा है ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी ‘
०७.०१.२०२०