हिंदी – माथे की बिंदी

लोगो की जनवाणी है
कुछ जानी -पहचानी है ,
भारत माँ के माथे की बिंदी
हिंदी बड़ी स्वाभिमानी है ।

एकता के सूत्र में पिरोती
प्रेम से अपने सबको भिंगोती ,
सबके ह्रदय के आशादीप
अपने हाथों से वो संजोती ।

लोगो की मुस्कान है
संस्कृत की अभिमान है ,
हिंदी एकलौती भाषा है जो
भारत की पहचान है ।

इसके करीब जो भी आता
पलभर में इसका हो जाता ,
इसकी मनभावनी सुगंध में
हर कोई खुद ब खुद खो जाता ।

आज़ादी की उस लड़ाई में
इसने बड़ा साथ निभाया था ,
एक कोने के विचार को , देश के
दूसरे कोने तक पहुँचाया था ।

अंग्रेजी साम्राज्य के सीने पर
तलवार बनकर बरसी थी ,
आमसभा से संसद तक
हिंदी हर जगह गरजी थी ।

अंग्रेज तो चले गए पर
अंग्रेजी पीछे छोड़ गए ,
हिंदी के बच्चे ही उससे
अपने मुंह को मोड़ गए ।

अंग्रेजी में बोलने वाले ही
बस जानकार अब कहलाते है .
हिंदी में जो बात करे वो
बस गँवार ही समझे जाते है ।

अपने आधार को छोड़ लोग
दूसरों के पीछे जाते है ,
ना वे उनके हो पाते है और
ना ही अपने रह जाते है ।

दूसरों से हम बिल्कुल सीखें
पर अपने पर स्वाभिमान रखें ,
अपनी धरोहर, अपनी सम्पदा का
हम सम्मान करें , अभिमान रखें ।

हिंदी हिन्द की भाषा है ,
हमारे गौरव की परिभाषा है ,
अपने प्राणों का उत्सर्ग किए
उन बलिदानियों की अभिलाषा है ।

जितना हमसे हो सके हम
उतना हिंदी का प्रचार करें ,
अपने ह्रदय में हमेशा हम
जनभाषा हिंदी का आभार रखें ।

निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
१७.१२.२०१८

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