ऋषियों के हम वंशज
और वीरो की संतान ,
देशभक्तों की भूमि है
ये मेरा भारत महान ।
शून्य के हम दाता है
और वेदो को प्रज्ञाता ,
अपने ज्ञान के परचम से ही
ये था जगतगुरु कहलाता ।
सम्पन्नता और विद्वता की
लिखी थी नई परिभाषा ,
इस देश में जाने की थी
सबकी बड़ी अभिलाषा ।
सागर की भांति सबको
हम अपने में समाहित करते ,
मगर कुछ जयचंद भी
इसकी भाग्य निर्धारित करते ।
अपने बच्चो द्वारा ही माँ
हर बार पराजित होती ,
अपनों के कमी के कारण
औरो पर आश्रित होती ।
भारत की प्रभुसत्ता फिर
मुगलों के हाथों आई ,
अपने बच्चो की करनी से
माँ बहुत पछताई ।
अकबर और औरंगजेब के समक्ष
जब सब समर्पण थे कर देते ,
तब भी महाराणा और शिवाजी जैसे
उनसे थे लोहा लेते ।
अंग्रेजो ने इस देश को फिर
पतन के गर्त में धकेला ,
बंगाल और पंजाब में उन्होंने
मौत का तांडव खेला ।
भारतियों को वो फिरंगी
कुत्तो के बराबर समझते ,
कानून और लगान के तहत
उन्हें भांति भांति कुचलते ।
मगर नागवार था ये सब
भारत की जवानी को ,
भगत और आज़ाद थे आए
लिखने नई कहानी को ।
‘इंक़लाब ज़िंदाबाद ‘ के नारे ने
उनके कानो में विस्फोट किया ,
जिनसे कभी ना वो उभर पाए
उनपर ऐसा उन्होंने चोट किया ।
फिर आई आज़ाद भारत की
सुबह की किरणे सुहानी ,
भारत को अब लिखना था
अपनी नई एक कहानी ।
बार-बार गिर के उठना
जीवन की कहानी है ,
जिसने कभी हार ना मानी
भारत की वो जवानी है ।
कइयों ने मिटाना चाहा मगर
हम आज भी विद्यमान है ,
इस संसार के नभपटल पर
सूर्य के सामान प्रकाशवान है ।
कोई भी श्रेष्ठ अपने
कर्मो से बनता है ,
व्यक्ति नहीं उसके गुणों की
पूजा विश्व करता है ।
मंगल और चाँद से हम
अब बातें है करते ,
विज्ञानं और तकनीक को
अपनी मुठ्ठी में है भरते ।
मगर , जब कोई भी भूखा
ना सोएगा पग में ,
तभी सही में कहलाएगा
श्रेष्ठ भारत जग में ।
निशांत चौबे ‘ अज्ञानी’
०४.१२.२०१४