परिस्थितियों से हताश किस्मत पर दोष ,
आखिर कब तक करेगा तू इन सब पर रोष ।
क्यूँ किसी दूसरे से तुझे
सम्मान पाने की ईच्छा है ,
क्यूँ कोई समझेगा तुझे
इस बात की प्रतीक्षा है ।
क्यूँ तेरे मन की स्थिति
दूसरों की बातें पर निर्भर है ,
क्यूँ उनकी हरकतों के कारण
जीना तेरा यहाँ दुर्भर है ।
क्यूँ तूने अपनी ख़ुशी
दूसरों के हाथों में दे दी ,
क्यूँ तूने उनकी सोच को
दिल पर अपने ले ली ।
जब जीवन ये तेरा है
तो खुद इसका रचयिता बन ,
जब नैया तेरी तूफानों से खेले
तो खुद उसका खैवईया बन ।
आज किसी बात से दुखी है
कल किसी और से होगा ,
सारी बातें तेरे अनुरूप हो
क्या कभी ऐसा भी होगा ?
तो दूसरों को नहीं
खुद को अपने अनुरूप बना ,
दूसरों को तू दौड़ने दे
खुद को अपने अनुरूप चला ।
जो कुछ भी तुझे महसूस होता
उसका कारण भी बस तू है ,
तेरी सारी समस्याओं का
निवारण भी बस तू है ।
चट्टान की भांति बना खुद को
गम के बदल टकरा बिखर जाए ,
सूरज जैसा चमक कि अब तो
ये जहाँ तेरी रौशनी से निखर जाए ।
निशांत चौबे ‘अज्ञानी’
१०.११.२०१७